दिल को हम बहुत समझाते हैं
पर तेरी इक जिक्र पर फिर कमजोर पड़ जाते हैं,
तुम दूर हो इस बात का अफ़सोस नहीं
एहसास कराते हो ,तो गम बढ़ता है
तेरी तस्वीरों को छूती आज भी मेरी उँगलियाँ
तेरी एक नज़र को तरसती हैं,
यार क्यों हो गए हम इतने दूर ! कि दीदार तक मुनासिब नहीं
कैसे मुमकिन हो तुझे भूलना …
मिल जाते हो जो कभी रस्ते पर ,,तुम्हे फिर से दूर जाने देना
भला कैसे मुमकिन हो
दोस्ती ही बढ़ते हुए प्यार तक पहुँच जाती है
वो तो हम होते हैं जो रिश्तों कि सीमायें बनाते हैं
तेरे झलक भर से याद आ जाता है मुझे मेरे अधूरापन,
तो तुझे भर निगाह देख पाना ,भला कैसे मुमकिन हो
अभी तक मौजूद है मेरे पास तेरी जो निशानियाँ,
अब मिटा पाना उन तमाम निशानियों को भला कैसे मुमकिन हो
जिन रास्तों पर हम कभी साथ थे ,,अकेले जब उन पर होती हूँ
तो तेरी याद ना आ जाना भला कैसे मुमकिन हो
चल पगले! खुश हूँ मैं, बस तू हँसता रह ऐसा बोल कर
खुद को समझाना भला कब तक मुमकिन हो
ख़ुशी हो तुम मेरी ,,तुम्हारे ना होने पर अपनी पहचान बताना
भला कैसे मुमकिन हो
दूर होकर मुझसे तू खुश दिखता है मुझे, ये देखते हुए भी मेरा तेरी जिंदगी में लौट आना
भला कैसे मुमकिन हो
एक ही तो गिला किया था इस दिल ने,,तुझसे दोस्ती का
अब रोज की इन सज़ाओं का दौर भला कब तक मुमकिन हो
इमानदारी की दोस्ती है पगले ! तेरा नमक ना सही
फाइव स्टार चॉकलेट तो खाया हैं मैंने
सखियाँ हमेसा पूछती थीं,” ऐसा क्या देख लिया उसमे जो दोस्ती कर बैठी ”
उन्हें क्या पता मैंने तुझमे वो ही देख लिया जो उन सब ने छोड़ दिया ,एक दोस्त
जो किसी रोज़ तू भूल गया मुझे ,,मेरा उस पल से ये खुश रहने का दिखावा भी
भला कब तक मुमकिन हो
किन्ही कारण से तू मेरा साथ ना दे पाए ,,
ये जानकर भी तुझे दुआ में याद करना दोस्ती है
लौटना कभी तो तुम्हे ‘shis’ उसी पगली सी मिलेगी
जो तेरे गलत होने पर भी, लोगो को तेरे सही होने का तर्क देती थी
हमेसा से गुरुर है मुझे, तुझसे दोस्ती का
जो मैं दिल से दोस्ती निभाऊ ,,दुनिया मोहब्बत समझ बैठती है
पहचान है तू मेरा ,,गिरेबान है तू मेरा
एक शब्द में लिखूं तुझे तो मेरे यार ,,,,बस दोस्त है तू मेरा
मुझसे दूर जाने में तेरी जीत है, इस लिए चुप हूँ वरना
अपनी यारी के लिए जबान मेरी भी खुल सकती थी
तेरी याद में मैं दुनिया को हर्फ़-ए-गमगीन कर सकती हूँ
अब महज़ कुछ लाइनों में तुझे बयां कर पाना भला कैसे मुमकिन हो …
बस यूँ ही लिख दिया …
दुनिया वालों !! ये ना समझना की दुखी हूँ मैं
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फूल खिलते हैं, लोग मिलते हैं मगर
पतझड में जो फूल मुरझा जाते हैं
वो बहारों के आने से खिलते नहीं
कुछ लोग एक रोज जो बिछड़ जाते हैं
वो हजारों के आने से मिलते नहीं
उम्रभर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम
वो फिर नहीं आते …
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आँख धोखा है ,,क्या भरोसा है
दोस्तों शक दोस्ती का दुश्मन है
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Shivangee, really a touching poem
u r a good writer👍👍👌👌😊
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जी सुक्रिया
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दिल को छूने वाली है दोस्ती की ये कविता आपकी,
इसी तरह लिखते रहिये…
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bahut bahut dhanywaad
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👍
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thanku
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Beautifully written and intense. Keep writing.
Here you can visit my post for a “broken Friendship”. I guess it relates to your poem.
https://shreyasharmasite.wordpress.com/2016/03/07/the-broken-friendship/
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thanks shreya for appricating
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,nicely said,,aapki poem bhi bahut kuch wahi kahti hai,,,,as like my poem> MY FRIENDSHIP DAY
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बहुत खूब शिवानगी जी
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dhanywaad
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Aapka Swagat hai Shivangi ji.
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